

चतरा जिले के नक्सल प्रभावित सिमरिया प्रखंड में स्थित देवकीटांड़ गांव, आज भी विकास की राह ताक रहा है। सरकारी उपेक्षा से तंग आकर ग्रामीणों ने अपनी मेहनत और आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की उन्होंने चावल बेचकर खुद सड़क बनाई और नेताओं के लिए नो एंट्री का फरमान जारी कर दिया।
लगभग 200 की आबादी वाला यह गांव, आजादी के 77 साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। बार-बार पंचायत स्तर पर पक्की सड़क बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ, लेकिन प्रशासन की लापरवाही और सरकारी उदासीनता के चलते सड़क और पुल का सपना अधूरा ही रह गया। नतीजा यह हुआ कि हर साल बरसात में गांव वाले खुद ही सड़क की मरम्मत करते हैं ताकि कम से कम आवाजाही बनी रहे।
देवकीटांड़ में सड़क न होने का असर सिर्फ यातायात पर ही नहीं, बल्कि युवा पीढ़ी के भविष्य पर भी पड़ा। शादी-ब्याह तक प्रभावित हो रहे हैं लड़की पक्ष वाले गांव की हालत देखकर रिश्ता करने से मना कर देते हैं। उनका कहना होता है, “जहां सड़क और अस्पताल तक नहीं, वहां अपनी बेटी कैसे दें। इस वजह से कई युवाओं की शादी तक नहीं हो पा रही है।
गांव के लोगों को बीमार पड़ने पर अस्पताल ले जाना हो, बच्चों को स्कूल भेजना हो या फिर जरूरी काम से बाहर जाना हो—हर बार उन्हें जान जोखिम में डालकर नदी पार करनी पड़ती है। बरसात में यह सफर किसी खतरनाक चुनौती से कम नहीं होता।
गांव वालों का आरोप है कि चुनाव के वक्त नेता वोट मांगने तो आते हैं, लेकिन उसके बाद गांव की ओर मुड़कर नहीं देखते। इससे नाराज ग्रामीणों ने अब नेताओं के लिए नो एंट्री का ऐलान कर दिया है। उनका कहना है जो हमारे दर्द को नहीं समझेगा, उसे हमारे गांव में आने का हक नहीं!”
सरकार और प्रशासन चाहे लाख विकास के दावे करें, लेकिन देवकीटांड़ जैसे गांव आज भी उन सरकार की विकास वाली दावों को आईना दिखा रहे हैं। आखिर कब तक यहां के लोग अपनी मेहनत के दम पर खुद ही बुनियादी जरूरतें पूरी करने को मजबूर रहेंगे। इस मामले को लेकर जब स्थानीय मुखिया सुनीता देवी से बात की तो, उन्होंने कहा कि देवकीटांड़ गांव के लिए और सड़क पुल की समस्या को ग्राम सभा करके जिला प्रशासन को दे दिया गया है, जल्द ही गांव में पक्की सड़क और पुल बनाया जाएगा।