

टंडवा/चतरा : एनटीपीसी नॉर्थ कर्णपुरा पॉवर प्लांट के लिए रविवार का दिन खास रहा। परियोजना के पहले और दुसरे युनिट से कॉमर्सिल बिजली के सफल उत्पादन ओर वितरण के बाद परियोजना के तीसरे युनिट से भी कमर्शियल बिजली का उत्पादन रविवार की रात्रि से शुरू हो गया। 1980 मेगावाट क्षमता वाली एनटीपीसी नॉर्थ कर्णपुरा के पहले युनिट से कमर्शियल बिजली का उत्पादन वर्ष 2023 के मार्च महीने मे सफल हो पाया था जिसके ठीक एक वर्ष बाद एनटीपीसी के दूसरे यूनिट से कमर्शियल बिजली का उत्पादन शुरू हुआ था। जिससे झारखंड बिहार बंगाल उड़ीसा और सिक्किम जैसे राज्यों में 1320 मेगावाट बिजली की आपूर्ति की जा रही थी। अब रविवार को तीसरी यूनिट से कमर्शियल बिजली के उत्पादन की सफलता के बाद एनटीपीसी ने जहां अपने 1980 मेगावाट क्षमता के लक्ष्य को हासिल कर लिया तो वहीं दूसरी ओर अन्य राज्यों में भी बिजली के आपूर्ति की संभावनाएं बढ़ गई है। एनटीपीसी नॉर्थ कर्णपुरा से वर्तमान समय में झारखंड राज्य को नियमित तौर से करीब पांच सौ मेगावाट बिजली आपूर्ति की जा रही है। एनटीपीसी ने तीसरे युनिट से कॉमर्सिल बिजली के सफल उत्पादन का ट्रायल रन लातेहार जिले के चंदवा पॉवर ग्रिड तक किया। तीसरी यूनिट के ट्रायल रन जैसे ही सफल हुआ वैसे ही मौके पर मौजूद पदाधिकारियो तालिया की गड़गड़ाहट गूंज उठी।
परियोजना के प्रति अधिकारियों और कर्मियों के सच्ची लग्न ने दिलाई सफलता : परियोजना प्रमुख
एनटीपीसी के तीनों यूनिट से कॉमर्शियल बिजली के सफल उत्पादन को लेकर परियोजना के कार्यपालक निदेशक संजीव कुमार सुआर ने कहा कि पहले और दूसरे यूनिट के सफलता के बाद कम समयो में तीसरी यूनिट से कमर्शियल बिजली का सफल उत्पादन होना हम सभी के लिए अत्यंत गौरवशाली क्षण है। उन्होंने कहा कि यह हमारे संपूर्ण परियोजना के मेहनती अधिकारियों और कर्मियों की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में है। जब उनके सच्चे लगन और मेहनत से किए गए प्रयासों के कारण एनटीपीसी नॉर्थ करणपुरा ने 1980 मेगावाट की निर्धारण क्षमता के साथक्ष बिजली का सफल रूप से उत्पादन करने का कीर्तिमान हासिल कर पाया हो।
26 साल बाद अटल जी का सपना हुआ साकार
एनटीपीसी नॉर्थ कर्णपुरा के स्थापना की कल्पना देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई ने की थी। अटल जी ने वर्ष 1999 के मार्च महीने के शुरुआती दौर में टंडवा पहुंचकर एनटीपीसी नॉर्थ कर्णपुरा परियोजना की आधारशिला रखी थी। आधारशिला के बाद कोयला मंत्रालय के आपत्ति के उपरांत करीब 15 वर्षों तक परियोजना के निर्माण कार्य अधर में लटका रहा। फिर वर्ष 2014 में निर्माण कार्य को गति दी गई जिसके करीब 11 सालों की कड़ी मेहनत और अटल के द्वारा आधारशिला रखे जाने के 26 सालों के बाद यह सफलता हाथ लगी। दरअसल उस वक्त कोयला मंत्रालय ने परियोजना के निर्माण के लिए अधिग्रहात की गई भूमि के नीचे कोयला होने की संभावना जताई थी।