शिक्षक दिवस पर खास : चतरा में राष्ट्रपति पुरुस्कार से सम्मानित शिक्षक मो इजाजुल हक से खास बातचीत


चतरा के उत्क्रमित उच्च विद्यालय दीवानखाना के प्रधानाध्यापक मो इजाजुल हक को वर्ष 2023 में शिक्षक दिवस के मौके पर राष्टपति पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है। इन्हें राष्टपति द्रौपदी मुर्मू ने शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्य के लिए सम्मानित किया था। प्रस्तुत है राष्टपति पुरुस्कार से सम्मानित शिक्षक मो इजाजुल हक से बातचीत का मुख्य अंश।
प्रश्न : आपको राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार क्यों दिया गया ?
जबाब : शिक्षा के क्षेत्र में सामुदायिक भागिदारी को बढ़ावा देने व खेल खेल में बच्चों का शैक्षणिक स्तर बढ़ाने के कार्यों के लिए उन्हें राष्टपति शिक्षक पुरुस्कार मिला है।
पश्न : आइडिया कैसे आया, प्रेरणा क्या रहा ?
जबाब : अपने स्कूल से दो किलोमीटर की दूरी पर वादे ए इरफा नामक एक अभिवंचित वर्ग (भुइंया समाज) के लोगों का एक टोला है। आते जाते देखा कि वहां के बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं और पुरे दिन खेलते रहते हैं। उन्होंने छुट्टी के दिनों में उस टोले में जाना शुरू किया। बच्चों को टोला में एकत्रित कर पढ़ाना शुरू किया। बाद में टोले के सभी 30 बच्चों को अपने स्कूल में नामांकन कराया। आज सभी बच्चे नियमित रूप से स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। जहां तक प्रेरणा की बात है तो वह स्वामी विवेकानंद के जीवनी से प्रेरित हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि ” जब तक लाखों लोग भुख और अज्ञानता में रहते हैं, मैं उन सभी लोगों को दोषी मानता हूं जो उनके खर्च पर शिक्षा पाकर उनके बारे में नहीं सोंचते ” इसी सोंच के तहत वह हमेशा अभिवंचित वर्ग के बच्चों को हमेशा शिक्षा से जोड़ने के कार्य में लगे रहते हैं।
प्रश्न : इस काम को कब शुरू किया, शुरूवात कैसे की ?
जबाब : शुरुआत तो वर्ष 1996 से ही हो गई थी। चतरा में उनकी पोस्टिंग 1994 में उत्क्रमित उच्च विद्यालय गजवा प्रतापपुर में हुई। जब वह वहां पदस्थापित थे। तब वहां के भुइंया टोली के एक भी बच्चे स्कूल दूर होने कारण नहीं आते थे। वर्ष 1996 में उन्होंने ग्रामीणों के साथ बैठक किया और गांव के ही एक व्यक्ति को स्कूल के लिए जमीन दान देने के लिए तैयार किया। इसके बाद शिक्षा विभाग के अधिकारियों से मिलकर भुइंया टोली में स्कूल खोलने के मना लिया। स्कूल खोलवाया और 60 अभिवंचित बच्चों का नामांकन कराया। आज प्राथमिक विद्यालय बगीचा के नाम से वहां स्कूल संचालित है। जहां 200 से अधिक अभिवंचित बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। यह बोल सकते हैं कि उन्होंने इसकी शुरुआत 1996 से ही कर दी थी।
पश्न : इसमें क्या दिक्कतें आई, कैसे निकला सामाधान ?
जबाब : अभिवंचित वर्ग के बच्चों को पढ़ाने में जो सबसे बड़ी समस्या आई वह है उनके अभिभावकों को समझाना। गरीबी व अशिक्षा के कारण ऐसे अभिभावक अपने बच्चों को छोटी उम्र में ही किसी ना किसी काम में लगा देते हैं, जिससे उनके पास कुछ पैसे आने लगते हैं। पैसे की त्याग कर बच्चों को स्कूल तक भेजने में अभिभावकों को परेशानी हुई। लेकिन लगातार समझाने बुझाने तथा स्कूल जाने वाले अगल बगल के बच्चों का उदाहरण देकर उन्हें शिक्षा से जोड़ने का काम किया।
प्रश्न : परिवार का कितना सहयोग रहा ?
जबाब : बगैर परिवार के सहयोग से यह सब संभव नहीं था। उनकी पत्नी बच्चों को लेकर हजारीबाग में रहती हैं। वह तो अपने स्कूल के बच्चों के साथ रहते हैं।
प्रश्न : कैसे उनका आइडिया बना शिक्षा का मुहिम, बाकी शिक्षकों और छात्रों को क्या संदेश देंगे ?
जबाब : उनके द्वारा शुरू किए गए बेटा बेटी एप्रोच, भैया, दीदी टीचर, गतिविधि आधारित शिक्षण को राज्य स्तर पर सराहना मिली। भैया दीदी टीचर के तहत वह स्कूल के पूर्ववर्ती छात्र छात्राओं को स्कूल में बुलाते हैं और वह बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ उनका मार्गदर्शन भी करते हैं। शिक्षकों के लिए यही संदेश है कि पहले वह स्वयं ज्यादा से ज्यादा सीखें और फिर पुरी तरह से तैयार होकर कक्षा में जाएं। शिक्षकों को यह समझना होगा कि वह राष्ट निर्माता हैं। इसे समझने के लिए एक मूलमंत्र है कि सरकार जो वेतन हमें देती है उससे मेरा अन्न दाना चलता है। उस अन्न दाना का हक अदा करना है।
पश्न : अपनी शिक्षण पद्धति से छात्रों के जीवन में किस प्रकार का बदलाव लाना चाहते हैं?
जबाब : वह हमेशा छात्रों को रटंत विद्या से दूर कर उनके अंदर वास्तविक शिक्षा का बोध कराने के साथ साथ बच्चों के दैनिक जीवन में होने वाली गतिविधियों के साथ खेल खेल के माध्यम से गतिविधि आधारित शिक्षण प्रदान कर उनके जीवन में बदलाव लाने का प्रयास करते रहते हैं।
प्रश्न : डिजिटल शिक्षा के इस युग में आप छात्रों को प्रेरित करने के लिए कौन-सी नई तकनीकें अपनाते हैं?
जबाब : स्कूल में इनफॉरमेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी ( आईसीटी) लैब है। जहां बच्चों को डिजिटल शिक्षा देते हैं। इसके अलावा बच्चों को फेट एप के माध्यम से डिजिटली मजबूत बनाते हैं।
प्रश्न : आपकी सबसे बड़ी चुनौती क्या रही है और आपने उसे कैसे पार किया?
जबाब : सबसे बड़ी चुन्नौती अभिवंचित वर्ग के बच्चों को स्कूल तक लाना और फिर इन्हें स्कूल में बनाए रखना रहा। इसके लिए उन्होंने शत प्रतिशत बच्चों का पहले आधार कार्ड बनवाया, फिर बैंक खाता खुलवाया। सभी बच्चों की छात्रवृत्ति शुरू कराई। जरुरत पड़ने पर लोगों से सहयोग लेकर काॅपी, कलम व अन्य आवश्यक पाठ्य सामग्री भी उपलब्ध करा कर बच्चों में स्कूल जाने व पढ़ाई करने की आदत डाला।
प्रश्न : आपकी नजर में एक आदर्श छात्र कैसा होता है और आप उसे कैसे प्रोत्साहित करते हैं?
जबाब : जो छात्र समय के साथ अपने आप को अपडेट करता हो तथा उसमें सीखने की ललक हो। जिस बच्चे में नाॅलेज, एट्टीट्यूड और स्कील हो उस विद्यार्थी को हम आदर्श छात्र की श्रेणी में रख सकते हैं। ऐसे बच्चों को हमेशा प्रोत्साहन मिलता है।
प्रश्न : आपकी सफलता में आपके परिवार और सहकर्मियों का क्या योगदान रहा है?
जबाब : बच्चों के सर्वांगीण विकास में पुरे समुदाय की भागीदारी होती है। परिवार और सहकर्मियों के सहयोग के बगैर आप कुछ भी नहीं कर सकते। परिवार के लोग घर परिवार चलाने में सहयोग करते हैं तो सहकर्मी स्कूल और बच्चों के लिए बनाए गए कार्ययोजना को पुरा करने में सहयोग करते हैं।