

चतरा जिले में गरीब परिवारों की जिंदगी इंट भट्ठों की आग में तप रही है। यहां के मजदूर दिन-रात तपती धूप और भट्ठों की गर्मी में पसीना बहाते हैं, लेकिन बदले में उन्हें मिलता है महज एक रुपये प्रति इंट की मामूली मजदूरी। यह कहानी न सिर्फ इन मजदूरों की मेहनत और मजबूरी को उजागर करती है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानता की उस गहरी खाई को भी दिखाती है, जिसे पार करना इनके लिए सपने जैसा है। एक दिन की मेहनत, एक रुपये की कीमत चतरा के ग्रामीण इलाकों में इंट भट्ठे गरीब परिवारों के लिए आजीविका का मुख्य साधन बन गए हैं। सुबह से शाम तक ये मजदूर कच्ची मिट्टी को इंट में ढालने, उसे सुखाने और भट्ठों में पकाने की प्रक्रिया में जुटे रहते हैं। एक मजदूर औसतन दिन में 500 से 700 इंट तैयार कर पाता है, जिसके लिए उसे 500 से 700 रुपये की दिहाड़ी मिलती है। लेकिन इस मेहनत के पीछे की सच्चाई कड़वी है। गर्मी में भट्ठों के पास काम करने से शरीर झुलसता है, आंखों में जलन होती है और कई बार सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। इसके बावजूद मजदूरी इतनी कम है कि परिवार का गुजारा मुश्किल से चल पाता है। मजबूरी बनाम मेहनतइन मजदूरों में ज्यादातर वे लोग हैं जिनके पास न तो खेती के लिए जमीन है और न ही कोई दूसरा रोजगार का विकल्प। चतरा जैसे इलाके में औद्योगिक विकास सीमित है और शिक्षा का स्तर भी निम्न होने के कारण ये परिवार पीढ़ियों से इस काम में उलझे हुए हैं। शंकर भारती एक मजदूर, बताते हैं, हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। बच्चों को दो वक्त की रोटी देनी है, इसलिए भट्ठे की आग में जलना पड़ता है। एक रुपये में एक इंट बनाना आसान नहीं, लेकिन मजबूरी है। उनकी पत्नी और बच्चे भी इस काम में हाथ बंटाते हैं, ताकि थोड़ी ज्यादा कमाई हो सके। स्वास्थ्य पर भारी पड़ता बोझ इंट भट्ठों में काम करने वाले मजदूरों का स्वास्थ्य भी इस मेहनत की कीमत चुका रहा है। लगातार धूल और धुएं के संपर्क में रहने से सांस की बीमारियां, त्वचा रोग और आंखों की समस्याएं आम हो गई हैं। गर्मी में डिहाइड्रेशन और हीट स्ट्रोक का खतरा भी बना रहता है। सरकारी योजनाओं का अधूरा असर सरकार की ओर से गरीबी उन्मूलन और मजदूर कल्याण के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जैसे मनरेगा और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना। लेकिन चतरा के इन मजदूरों का कहना है कि इन योजनाओं का लाभ उन्हें पूरी तरह नहीं मिल पाता। मनरेगा में काम के दिन सीमित हैं और भुगतान में देरी आम बात है। वहीं, इंट भट्ठों पर रोजाना काम मिलता है, भले ही मेहनत के हिसाब से मजदूरी कम हो। एक मजदूर, मनु कुमार, कहते हैं, मनरेगा में साल में 100 दिन भी काम नहीं मिलता, जबकि भट्ठे पर हर दिन कमाई हो जाती है। ठेकेदारों का शोषण इन मजदूरों की स्थिति को और बदतर बनाता है ठेकेदारों का शोषण। कई बार मजदूरी का पूरा भुगतान नहीं किया जाता या फिर काम के घंटे बढ़ा दिए जाते हैं। एक रुपये प्रति इंट की दर भी ठेकेदारों की मर्जी पर निर्भर करती है। मजदूरों को संगठित करने या अपने हक के लिए आवाज उठाने की स्थिति में भी ये नहीं हैं, क्योंकि रोजगार छिन जाने का डर बना रहता है। चतरा के इंट भट्ठों पर काम करने वाले ये गरीब परिवार न सिर्फ आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, बल्कि सामाजिक उपेक्षा और स्वास्थ्य संकट का भी शिकार हैं। एक रुपये प्रति इंट की मजदूरी में उनकी जिंदगी सिमट कर रह गई है। जरूरत है बेहतर मजदूरी, स्वास्थ्य सुविधाओं और शिक्षा के अवसरों की, ताकि इन परिवारों को इस आग से बाहर निकाला जा सके। सरकार और समाज को मिलकर इनके लिए एक ठोस रास्ता तैयार करना होगा, वरना ये मजदूर भट्ठों की आग में झुलसते रहेंगे और इनका भविष्य धुएं में खोता जाएगा। वहीं चतरा के जिला उपायुक्त रमेश घोलप ने मजदूरों की स्थिति को बेहतर करने के लिए कदम उठाने की बात कही है। उन्होंने बताया कि मजदूरों के हित में मनरेगा के तहत विभिन्न योजनाएं संचालित की जा रही हैं। डीसी ने सभी प्रखंड विकास पदाधिकारियों को निर्देश दिया है कि सरकार द्वारा संचालित सभी योजनाओं को धरातल पर उतारा जाए, ताकि मजदूरों को इसका सीधा लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि योजनाओं की नियमित समीक्षा हो और इनके प्रभाव का आकलन किया जाए, ताकि मजदूरों के जीवन स्तर में सकारात्मक बदलाव लाया जा सके।