हजारीबाग में मनाई गई प्रेमचंद और तुलसी जयंती, कवियों ने रचनाओं के माध्यम से समाज, साहित्य और समकालीनता को छूने वाली भावनाएं व्यक्त कीं


हजारीबाग,— झारखंड जन संस्कृति मंच हजारीबाग द्वारा पेंशनर कार्यालय परिसर में प्रेमचंद जयंती, तुलसी जयंती और मासिक कवि सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम में हजारीबाग एवं आसपास के क्षेत्र से बड़ी संख्या में कवि, साहित्यकार, शोधकर्ता और साहित्य प्रेमी उपस्थित हुए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात पर्यावरणविद् सुरेंद्र प्रसाद सिंह ने की, मुख्य अतिथि रहे कवि अधिवक्ता अरविंद झा, तथा विशिष्ट अतिथि कवि राजू विश्वकर्मा थे।
पहला सत्र: साहित्य को समर्पित वक्तव्य
कार्यक्रम की शुरुआत में शंकर गुप्ता ने प्रेमचंद के साहित्यिक अवदान पर प्रकाश डालते हुए उन्हें लू शून और मैक्सिम गोर्की की पंक्ति में रखा। वक्ताओं में डॉ. प्रमिला गुप्ता, डॉ. साकेत पाठक, प्रमोद रंजन, विजय कुमार राणा, अरविंद झा, मुनेश्वर सिंह, आसिफ अंसारी सहित कई विद्वानों ने प्रेमचंद के ‘गोदान’, ‘कफ़न’, ‘ईदगाह’, ‘ठाकुर का कुआं’ जैसी रचनाओं की समीक्षा की। डॉ. प्रमिला गुप्ता ने तुलसीदास की सगुण और निर्गुण भक्ति पर विचार रखते हुए उनकी रचनाओं में निहित आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक मूल्य पर विस्तार से प्रकाश डाला।
दूसरा सत्र: कविताओं की संगीतमयी बयार
दूसरे सत्र की शुरुआत डॉ. प्रमिला गुप्ता की कविता “ठंडी आग” से हुई, जिसने पर्यावरणीय भावनाओं को उकेरा। सुप्रिया रश्मि की मार्मिक रचना “बिटिया आज हो गई पराई”, विजय कुमार राणा की “धीरे-धीरे इंसान बनने”, तथा कुणाल कौशल की कविता “हजारीबाग अब मेरा शहर नहीं लगता” ने सामाजिक यथार्थ को रेखांकित किया।
संजय हजारीबागी ने प्रेमचंद पर आधारित दोहों के माध्यम से श्रोताओं को आनंदित किया, जबकि प्रमोद रंजन की कविता “सौतेली उम्मीद” और विजय कुमार कर्ण की “प्रेमचंद की कलम चली” ने तालियां बटोरीं। अमरेज अंसारी की “सावन की रात” और राजश्री की “बुरा वक्त” ने युवा भावनाओं की गहराई को दर्शाया।
राजू विश्वकर्मा ने खोरठा कविता “अब नय जयबो हम ससुरारी के मैया” से हास्य का रंग घोला, जबकि डॉ. कविता सिन्हा की “कर्म से कलम” और आसिफ अंसारी की ग़ज़लें प्रेमचंद के उर्दू लेखन को सामने लाईं।
युवा कवियों में केतन कृत ने तुलसीदास की चौपाइयों का सुंदर पाठ किया, मुनेश्वर सिंह ने मगही रचना “मां-बाप लिखो फेंको कलम हो गैले” से ग्रामीण संवेदनाओं को छुआ, और पूनम त्रिवेदी श्लाघ्या की “शिव क्यों हुए रौद्र” ने केदारनाथ त्रासदी की स्मृतियां ताज़ा कीं।
समापन: विरह और संवेदना का संगम
अध्यक्ष सुरेंद्र प्रसाद सिंह ने सभी रचनाकारों की सराहना करते हुए एक सोहर और “उर्मिला का विरह गीत” प्रस्तुत कर कार्यक्रम को भावनात्मक ऊंचाई पर पहुंचाया। क्षितिज राज, लक्की कुमारी, अरुण कुमार सिंह और अर्जुन प्रसाद सहित कई नवोदित रचनाकारों ने भी मंच से अपने विचारों की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रमिला गुप्ता ने किया और धन्यवाद ज्ञापन शंकर गुप्ता ने।
यह आयोजन साहित्य और संस्कृति के प्रति निष्ठा, संवाद और सृजनशीलता की प्रेरणादायक मिसाल बनकर उभरा, जिसमें प्रेमचंद और तुलसी की विचारधारा को नए दौर की आवाज़ों ने नए अर्थों में प्रस्तुत किया।