आरएनएम कॉलेज में स्वतंत्रता आंदोलन में उर्दू भाषा कि भूमिका पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन।



Chatra : हंटरगंज के राम नारायण मेमोरियल कॉलेज के सभागार में उर्दू विभाग के द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में उर्दू भाषा कि भूमिका पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस सेमिनार की अध्यक्षता उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ० फहीम अहमद एवं संचालन प्रो कमरुद्दीन अंसारी ने किया।मुख्य अतिथि के रूप में कॉलेज के प्राचार्य प्रो० जैनेंद्र कुमार सिंह उपस्थित थे।इस मौके पर आईंक्यूएससी कोऑर्डिनेटर प्रो अनिल कुमार सिंह,अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष हाजी ताहिर हुसैना सोशियोलॉजी विभाग के डा० राजीव रंजन तिवारी,फिजिक्स विभाग के डा० रामजीत यादव मुख्य रूप से मौजूद थे।मुख्य अतिथि ने अपने संबोधन में कहा कि भाषा ही मनुष्य और पशु में फ़र्क करता है। उन्होंने आगे कहा कि मुस्लिम शासक भारत आए तो अपने साथ वेश भूषा और अरबी फारसी भाषा भी साथ लाए।यहां की कई भाषाओं के साथ संस्कृत और हिन्दी के साथ मिश्रण हुआ और नए भाषा उर्दू की उत्पति हुई जो जन जन की बोल चाल की भाषा बन गई।उर्दू भाषा के शब्द ने लोगों के दिलों तक पहुंच गया।अन्य भाषाओं के साथ उर्दू भाषा ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में महती भूमिका निभाई।भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में इस का उल्लेख मिलता है।हिंदी की तरह ही उर्दू भी मूल रूप से भारतीय भाषा है।किसी भी भाषा का उपेक्षा नहीं होनी चाहिए अन्य भाषाओं की तरह इस भाषा का भी आदर होना चाहिए और इसके विकास के लिए संयुक्त प्रयास हम सब की जिम्मवारी होनी चाहिए।हिंदी उर्दू दोनों भारतीय भाषा है दोनों जुड़वां बहने हैं।किसी के साथ भेद भाव नहीं होनी चाहिए।जब भारत देश गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ था तो इस भाषा के विद्वानों ने अपने काव्य और कहानियों के माध्यम से आजादी की बिगुल फूंका।इतिहास के पन्नों में आज भी देखा जा सकता है।इस अवसर पर अध्यक्षीय संबोधन में उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ० फहीम अहमद ने कहा कि जंग आजादी में उर्दू अखबारों और साहित्यकारों ने देश की आजादी के खातिर अंग्रेजों के जुल व बर्बियत के शिकार हुए।कई साहित्यकारों की किताबों और अखबार के संपादकों को जेल जाना पड़ा।कई को शहीद कर दिया गया।कितने किताबों, अखबारों और पत्रिका पर पाबंदी लगाई गई।उन्होंने आगे कहा कि उर्दू का पहला अखबार जाम ए जहां नुमा था जो 1823 में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ था। ईस्ट इंडिया कम्पनी अपनी आवश्यकता के अनुसार कभी उर्दू तो कभी फारसी में साप्ताहिक प्रकाशित किया जाता था।1823 ई से 1857 ई तक उर्दू भाषा में 122 अखबार प्रकाशित हुए।1858 ई से 1900 ई तक चार सौ से अधिक उर्दू समाचार पत्र अस्तित्व में आ चुके थे।जिस में लगभग पच्चीस फीसदी उर्दू अखबार के मालिक गैर मुस्लिम थे।जिस में बड़े नाम पंडित त्रिभुन नाथ हिजर,पंडित रतन नाथ सरसार,मुंशी ज्वाला प्रसाद,बृज नारायण चकबस्त का नाम शामिल है।जबकि कॉलेज सहायक व्याख्या प्रो कमरुद्दीन अंसारी ने सेमिनार का पेपर पढ़ने के माध्यम से बताया कि 1905 में प्रेम चंद के द्वारा लिखी पुस्तक सोज ए वतन और मंटु की पुस्तक तमाशा पर अंग्रेजी हुकुम्मंत ने प्रतिबंध लगा दिया।1857 के जंग आजादी में उर्दू उर्दू शायरों में मुहम्मद शाह रंगीला ने शायरी और भाषण के माध्यम से आजादी की बिगुल फूंक दिया।आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के अगुवाई में लड़ी जा रही स्वतंत्रता संग्राम के समय दो दर्जन उत्कृष्ट कवि एकत्रित हो चुके थे।जो आजादी की लड़ाई में अपनी कलम की खुशबू फैला रहे थे।सेमिनार पेपर सफलता पूर्वक हिना फिरदौस,सलमा प्रवीण इशरत यासमीन,शाएमा परवी सानिया वहीद,रिफत फातमा नूरुननिशा और मोहम्मद वसीम अकरम का नाम शामिल है।