झारखंड कांग्रेस में उठी असली लड़ाई — स्लीपर सेल्स के खिलाफ समर्पित कार्यकर्ताओं का विद्रोह”झारखंड कांग्रेस कमिटी के प्रभारी के राजू को दिलदार अंसारी ने सौंपा ज्ञापन


हजारीबाग | झारखंड कांग्रेस में इन दिनों एक नई बहस छिड़ी हुई है — “कांग्रेस को बचाने की लड़ाई।” यह लड़ाई किसी पद या शक्ति के लिए नहीं, बल्कि संगठन की आत्मा और विचारधारा को बचाने की मुहिम बन गई है।
कांग्रेस सिर्फ एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि भारत के संविधान, समानता और सामाजिक न्याय की विचारधारा का प्रतीक रही है। यही वह पार्टी है जिसने कभी कॉरपोरेट या जातिवाद की राजनीति नहीं की। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हमेशा संगठन में विकेंद्रीकरण और “जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” के सिद्धांत की वकालत की है, ताकि हर स्तर का कार्यकर्ता सम्मानित महसूस करे।
परंतु झारखंड में हाल के दिनों में इस परंपरा पर सवाल उठ रहे हैं। कई समर्पित कांग्रेस कार्यकर्ताओं का आरोप है कि संगठन के कुछ जिम्मेदार लोग केंद्रीय नेतृत्व को गुमराह कर रहे हैं और “स्लीपर सेल्स” को पार्टी में जगह दिला रहे हैं। ये वही तत्व हैं जो अंदर ही अंदर संगठन को कमजोर करने का काम कर रहे हैं।
कुछ जिलों में वर्तमान विधायकों को जिला अध्यक्ष बना दिया गया है, कहीं संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले लोगों को पद दे दिए गए हैं, तो कहीं भाजपा और अन्य दलों से आए व्यक्तियों को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह कांग्रेस की चयन प्रक्रिया और पारदर्शिता के सिद्धांतों के खिलाफ है।
इस विरोध की अगुवाई कर रहे हैं वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोहम्मद दिलदार अंसारी, जो पिछले 30 वर्षों से पार्टी की सेवा में सक्रिय हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा — “यह लड़ाई व्यक्तिगत नहीं, संगठन की आत्मा को बचाने की लड़ाई है। कांग्रेस में जो लोग भाजपा के स्लीपर सेल बनकर काम कर रहे हैं, उन्हें पहचानना और बाहर करना जरूरी है। हम तब तक संघर्ष जारी रखेंगे जब तक समर्पित कार्यकर्ताओं को उनका हक और सम्मान नहीं मिलता।”
दिलदार अंसारी ने यह भी कहा कि असली कार्यकर्ता वे हैं जो चुनावों में जनता के बीच रहते हैं, विरोध झेलते हैं, गालियां सुनते हैं, पर फिर भी पार्टी के लिए जी-जान लगा देते हैं। ऐसे योद्धाओं को दरकिनार कर संगठन को मजबूत नहीं किया जा सकता।
उन्होंने सभी सच्चे कांग्रेसजनों से अपील की — “अगर आप भी कांग्रेस की विचारधारा में विश्वास रखते हैं, तो आवाज उठाइए। यह लड़ाई कांग्रेस को बचाने की है, किसी व्यक्ति या पद की नहीं।”
झारखंड कांग्रेस में यह आंतरिक मंथन अब खुलकर सामने आने लगा है। सवाल यही है कि क्या केंद्रीय नेतृत्व समय रहते इन आवाजों को सुनेगा, या फिर पार्टी का संगठनात्मक ढांचा अंदर से कमजोर होता रहेगा।