एनटीपीसी विस्थापन विवाद: बड़कागांव में न्याय की लड़ाई तेज, सत्याग्रह की चेतावनी – रवि पांडे


हजारीबाग/बड़कागांव। झारखंड के बड़कागांव में एनटीपीसी विस्थापितों का आंदोलन लगातार तेज होता जा रहा है। पिछले 70 दिनों से धरने पर बैठे रैयतों ने अब चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो 18 अगस्त के बाद कोयला खनन बंद कर दिया जाएगा। इसी कड़ी में समाजसेवी रवि पांडे ने सत्याग्रह पर बैठने की चेतावनी दी है।
रवि पांडे ने आरोप लगाया कि बड़कागांव की विस्थापन समस्या को राजनीतिक परिवारों ने अपनी रोटियां सेंकने का माध्यम बना लिया है, जबकि असली पीड़ा स्थानीय आदिवासी व गरीब परिवारों की है। उन्होंने कहा कि “विस्थापितों की लड़ाई में आज तक कितने नेता या उनके परिवार ने बलिदान दिया? यह लड़ाई केवल राजनीति नहीं, बल्कि अस्तित्व की है।”
रवि पांडे ने बताया बड़कागांव में परिवार वाद नहीं चलेगा। पूर्व मंत्री सह पूर्व विधायक योगेंद्र साव, उनकी पत्नी निर्मला देवी पूर्व विधायक और बेटी अम्बा प्रसाद पूर्व विधायक सह कांग्रेस की केंद्रीय महासचिव बड़कागांव के लोगों को बड़गालना बंद करे।
“अपनी ही जमीन पर गार्ड बने लोग”
रवि पांडे ने उदाहरण देते हुए बताया कि सिंदवारी पंचायत के सोनबरसा गांव के निवासी सुरेश राम (36 वर्ष) कभी अपनी जमीन के मालिक थे, लेकिन आज उसी कोयला प्रोजेक्ट में गार्ड की नौकरी करने को मजबूर हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि अच्छी नौकरियाँ बाहरी राज्यों से आने वाले लोगों को मिलती हैं, जबकि विस्थापित परिवार दिहाड़ी या मामूली नौकरियों पर निर्भर हैं।
पकरी बरवाडीह कोयला परियोजना से 19 गांव प्रभावित
एनटीपीसी की पकरी बरवाडीह कोयला परियोजना का विस्तार अब तक कम से कम 19 गांवों तक फैल चुका है। इनमें कई गांव जैसे इतिज, चुरचू और उरूब पूरी तरह उजड़ चुके हैं। आधिकारिक दस्तावेज़ों के अनुसार, पहले चरण में परियोजना के लिए 3319 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की गई है, जिसमें 1950 हेक्टेयर कृषि भूमि, 101 हेक्टेयर आवासीय भूमि और लगभग 644 हेक्टेयर वन भूमि शामिल है।
नेताओं और जनप्रतिनिधियों से समर्थन की अपील
रवि पांडे ने स्थानीय विधायक रौशन लाल चौधरी और सांसद मनीष जयसवाल से विस्थापितों की मांगों का समर्थन करने की अपील की है। उनका कहना है कि अगर न्याय नहीं मिला तो आंदोलन को और बड़े स्तर पर ले जाया जाएगा।
जनसांख्यिकी पर असर
उन्होंने कहा कि खनन ने जहां स्थानीय आदिवासी और दलित समुदायों को विस्थापित किया है, वहीं दूसरी ओर बाहरी राज्यों से प्रवासी लोग रोजगार की तलाश में यहां आकर बस रहे हैं। इससे झारखंड की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना पर गहरा असर पड़ा है।